सांस्कृतिक अंधविश्वास और विज्ञान: इतिहास और उत्पत्ति की गहराई में

अंधविश्वास एक ऐसी मान्यता या प्रथा है जिसे लोग इसलिए मानते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसे मानने से उनके भाग्य में परिवर्तन हो सकता है फिर चाहे वह परिवर्तन सकारात्मक या नकारात्मक हो। परंतु विज्ञान की दृष्टि से ऐसी मान्यताओं या प्रथाओं का कोई आधार नहीं है। ऐसे कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है जो यह प्रमाणित करें कि यह काम करता है। हालांकि कई अंधविश्वासो के पीछे विज्ञान काम करता है, परंतु लोगों को उन वैज्ञानिक तथ्यों के बारे में नहीं पता होता है, जो उस व्यक्तिगत प्रथा के पीछे छुपा होता है। यह मान्यताएं अक्सर पुरानी परंपराओं, मिथकों या सांस्कृतिक आदतों पर आधारित होता है। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों का मानना है कि दर्पण तोड़ने से सात साल का दुर्भाग्य आएगा, या चार पत्ती वाला तिपतिया घास मिलने से सौभाग्य आएगा। हर धर्म, संस्कृति और समुदाय में अंधविश्वास देखने को मिलता है।

हमारी आने वाली पीढ़ी मैं भी यही मान्यताएं और अंधविश्वास तेजी से फैलने लगता है। उन अंधविस्वासो के फैलने का कारण है-

1: परिवार की परंपराएं – परिवार में कुछ ऐसे अंधविश्वास पहले से होते हैं जो कि वो अपने बच्चों को भी सिखाते हैं अपनी परंपराओं का हिस्सा बता कर।

2: सांस्कृतिक प्रथाएं – हमारे परिवारों में ऐसी संस्कृत प्रथाएं या मान्यताएं होती है जिसमें अंधविश्वास शामिल होता है, जिसे आने वाली पीढ़ी भी फॉलो करती है।

3: कहानियां – लोक कथाएं और कहानियां जो कि हमारे बीच चर्चित होती है, अंधविश्वास के फैलने का कारण होती है।

4: समाज – कुछ विश्वास तो हम अपने समाज से सीखते है और कभी-कभी मीडिया के माध्यम से यही विश्वास और भी मजबूत हो जाते हैं।

इन अंधविश्वासों की जड़ संस्कृतिक प्रोत्साहन, हमारा खुद का व्यक्तिगत अनुभव या समाज से संपर्क में रहना है।

ऐतिहासिक संदर्भ: Historical context

इन अंधविश्वासों की उत्पत्ति आखिर हुई कैसे? कैसे आखिर इन अंधविश्वासों को इतना महत्व दिया जाने लगा? आईए समझते हैं इन बातों को।

इन मान्यताओं की उत्पत्ति के कई कारण हो सकते हैं। कुछ व्यक्तिगत ऐतिहासिक घटनाएं, संस्कृतिक विश्वास, दुनिया को समझने की चाह या वैज्ञानिक समझ की कमी इन अंधविश्वासों को जन्म देती है। आईए थोड़ा अच्छे से समझते हैं।

हमारी प्राचीन संस्कृति ने प्राकृतिक घटनाओं को समझाने की कोशिश में अंधविश्वास को जन्म दे दिया। उदाहरण के तौर पर जब हमारी प्राचीन संस्कृति के लोग किसी comet (धूमकेतु) को देखते थे तो उसे अशुभ मानते थे।

कुछ ऐतिहासिक घटनाओं के कारण भी अंधविश्वास फैला। उदाहरण के लिए प्राचीन समय में काली बिल्ली को देखने के बाद किसी का भारी नुकसान हो गया तो लोग मानने लगे कि बिल्ली अशुभ होती है।

प्राचीन समय में कुछ वस्तुओं को किसी का प्रतीक माना जाता था। जैसे प्राचीन समय में दर्पण को आत्मा का प्रतीक माना जाता था, इसलिए दर्पण का टूटना अशुभ बना दिया गया।

प्राचीन समय मे साइंटिफिक व्याख्या उपलब्ध नहीं थी। जिस कारण उस समय के लोग जब उन चीजों को समझने की कोशिश करते थे जिनकी व्याख्या वो खुद नहीं कर सकते थे, उसे उन्होंने अंधविश्वास से जोड़ दिया। जैसे अचानक बीमारियां या दुर्घटनाएं।

यह अंधविश्वास अक्सर कहानियों ,रीति-रिवाजो और सांस्कृतिक मान्यताओं के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी गुजरते हैं और समय के साथ विकसित होते रहते हैं लेकिन उनकी मूल जड़े बरकरार रहती है।

वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण

अंधविश्वास cognitive bias द्वारा समझाया जा सकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अंधविश्वास confirmation bias पर आधारित है। इसमें होता ये है कि कि लोग सिर्फ उन्ही घटनाओं का ध्यान करने की कोशिश करते हैं जो उनके मौजूदा विश्वास को प्रमाणित करती है। आसान शब्दों में अगर बताया जाए तो ऐसे समझ सकते हैं कि अगर कोई मानता है कि एक खास ताबीज भाग्य लाता है तो लोग केवल उन्हीं घटनाओं को याद रखेंगे जहां उस ताबीज के कारण उनके साथ कुछ अच्छा ही हुआ हो और उन मौकों को भूल जाएंगे जब ताबीज का कोई असर नहीं हुआ।

इंसान पैटर्न को देखकर कनेक्शन बनाने की कोसिस करने लगता है यह इंसानों की प्रवृत्ति होती है। पर इंसान ऐसा कनेक्शन बनाने लगता है जो उसके हिसाब से सही है पर वास्तविकता में उसका कोई अस्तित्व नहीं है। जिसके कारण उसके अंदर ऐसे अंधविश्वास वाली सोच विकसित होने लगती है और अपने जीवन की घटनाओं को इस सोच से जोड़ने लगता है।

अगर मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से बात करें तो अगर कोई इंसान किसी चीज में सकारात्मक रिजल्ट पाने के लिए अगर कोई रस्म करता है और अगर वह रस्म सफल हो जाती है और उसे सकारात्मक रिजल्ट मिल जाता है, तो वह इस रस्म को उस रिजल्ट से जोड़ देता है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अंधविश्वास का एक और पहलू है। अंधविस्वास अक्सर परिवार, दोस्तो से सीखे जाते है। साइकोलॉजी की एक थ्योरी के अनुसार लोग दूसरों को देखकर और नकल करके विश्वास और व्यवहार अपनाते हैं।

आज के समय भी पिछड़े इलाको में अंधविश्वास वाली सोच चली आ रही है। पर आज कल के युवा में अंधविश्वास वाली कुछ मान्यताएं या विश्वास कम हो रहा है। आप क्या सोचते हैं इन मान्यताओ के बारे में कमेंट करके हम जरूर बताएं।

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